पार्टनर्स इन प्रोस्पेरिटी एनजीओ द्वारा “कल्टीवेट विथ केयर “ अभियान के तहत एक वर्कशॉप का रामनगर में किया आयोजन।

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रोशनी पाण्डेय – सह सम्पदाक

 

रामनगर -पार्टनर्स इन प्रोस्पेरिटी एनजीओ द्वारा “कल्टीवेट विथ केयर “ अभियान, काशीपुर और बाजपुर में प्रारंभ किया जा रहा है आज की प्रेस कांफ्रेंस कल्टीवेट विथ केयर (CWC) की जानकारी को आपके साथ साझा कर उसको आम किसानो तक पहुचाना पार्टनर्स इन प्रोस्पेरिटीका उधेश्य है ।
कल्टीवेट विथ केयर (CWC) – क्या है ?
देश के कई हिस्सों में चावल प्रमुख फसल है जिसपर वैश्विक खाद्य सुरक्षा भी निर्भर करती है । अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान और तेलंगाना राज्य कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जयशंकर ने कृषि के लिए बढ़ते जल की कमी और पर्यावरणीय चिंताओं को देखते हुए जल संरक्षण तकनीको का विकास किया है । एकांतर गीला और सूखा उन जल कुशल तकनीकों में से एक है ।

 

पार्टनर्स इन प्रोस्पेरिटी एनजीओ, एक गैर सरकारी संस्था जिसका मुख्यालय दिल्ली में स्थित है, पिछले कुछ वर्षों से 6000 से अधिक किसानो के साथ जैविक कृषि, फेयर ट्रेड, जल संचयन, गोबर गैस संयंत्रों की स्थापना, कौशल विकास के कार्यक्रम, और समुदाय आधारित कार्यक्रमों के साथ सामुदायिक सशक्तिकरण के लिए कार्य कर रही है । हमारी आपूर्ति श्रंखला और सामाजिक व पर्यावरणीय विशेषज्ञ 14 राज्यों में सुनिश्चित करते हैं की वस्तुओं की नैतिक सौर्सिंग हो जो पर्यावरण और लोगो के हित में हो ।
इसी उद्देश्य के साथ पार्टनर्स इन प्रोस्पेरिटी “कल्टीवेट विथ केयर” अभियान की शुरुआत कर रहा है जिसमे, काशीपुर और बाजपुर क्षेत्र के धान की खेती में AWD तकनीक को बढ़ावा दिया जायेगा ।

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एकांतर गीला और सूखा पद्यति क्या है ?

धान की खेती में जल प्रबंधन की एक तकनीक जो सिंचित धान की समतल नीची भूमि को कम जल से सिंचित करने में सहायक है और साथ ही कम मात्रा में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करती है । इसमें, सिंचाई जल तब लगाया जाता है जब खेतो में सिंचित जल पूरी तरह से इस्तेमाल कर लिया जाता है ।

 

खेतों को एक अवधि के लिए सिंचित किया जाता है और दोबारा सिंचाई से पहले उस जल को सूखने दिया जाता है, जिससे जल की बचत के साथ ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी भी आती है जब हम इस विधि की तुलना अन्य खेतों से करते हैं जो नियमित जल भराव पद्यति अपनाते हैं | धान के खेतों को रोपाई के बाद लगभग 2 हफ़्तों तक सूखने दिया जाता (सीधे बुवाई में जब तक पौधा 10 सेंटीमीटर का न हो जाये) है जब तक सिंचित जल खेत में लगाए गए छिद्र युक्त नली में 10 सेंटीमीटर नीचे न चला जाये ।
खेतों में सिंचाई 5 सेंटीमीटर के ऊँचाई तक की जाती है और जल को सूखने दिया जाता है जब तक उसका स्तर जमीन की सतह से 10 सेंटीमीटर नीचे न चला जाये | सिंचाई की इस तकनीक में जल भराव और जल के सूखने की प्रक्रिया को धान की फसल के पकने तक बार बार दोहराया जाता है | मृदा के प्रकार, मौसम और फसल बढ़त की अवस्था का अनुसार फसल में उपयुक्त जल को सूखने देने और पुनः 1 से 7 दिनों में सिंचाई करना AWD का हिस्सा है ।
एकांतर गीला और सूखा विधि कहाँ की जा सकती है?
जिन किसानों के पास सिंचाई जल के श्रोत है वें अपने खेतो में दोबारा सिंचाई तब कर सकते हैं जब AWD नली में जल सुरक्षित स्तर तक न पहुँच जाये उन क्षेत्रों में जहाँ वर्षा की मात्रा फसल की आवश्यकता से अधिक होती है, उचित नहीं है क्योंकि खेत अतिरिक्त जल की निकासी कर पाने में असक्षम होंगे| जिन क्षेत्रों में सिंचाई जल की उपलब्धता अनिश्चित होती है वहां समय पर फसलों को दोबारा सिंचाई देने की आवशकता होती है । यह तकनीक वर्षा जल और अंतिम छोर तक नाहर या गुलों से सिंचित भूमि के लिए नहीं है ।

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AWD तकनीक के संभावित फायदे 1.) सिंचाई जल की कम आवश्यकता 2.) किसानो की कुल आय में वृद्धि 3.)
GHG उत्सर्जन में रोक
इस पृष्ठभूमि के आधार पर, कृषि में सिंचाई जल के उपयोग और उसके बचाव के लिए AWD का हस्तक्षेप, राज्य में उन्नत सिंचाई और जलवायु दक्ष कृषि तकनीकों के उपयोग के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। आशा है की उत्तरखंड के कृषक बन्धु इस तकनीक का उपयोग करने आगे आयेंगे ।

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समुदाय के फायदे:
अपने कार्यक्रमों के माध्यम से पार्टनर्स इन प्रोस्पेरिटी ने समुदायों के जीवन को प्रभावित किया है। समुदायों से मिल, परिचर्चा कर नहर एवं गूलों के मरम्मत, स्वच्छ पेयजल और सौर उर्जा संचालित स्ट्रीट लाइट उपलब्ध करा, यूवाओं को कौशल विकास के अवसर देकर निरंतर सहयोग दिया है। हम काशीपुर और बाजपुर क्षेत्रों में भी विकास के ऐसे तंत्र स्थापित कर कार्य करने प्रतिबद्ध हैं।

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