उधम सिंह राठौर – प्रधान संपादक

रामनगर। एक ऐसा अफसर जिसकी ईमानदारी की लोग मिसाल दिया करते नही थकते, जिसके नाम से ही वन एवम खनन माफिया ख़ौफ़ज़दा थे। अचानक उसका तबादला तराई पश्चिमी वन प्रभाग से रामनगर वन प्रभाग में किए जाने की खबर नगर में इन दिनों शोशल मीडिया में जहां खूब सुर्खियां बटोर रही है। वही जीरो टारलेन्स का खम भरने वाली सरकार की कार्य प्रणाली पर भी लोग फेसबुक से लेकर सोशल मीडिया में सवाल उठाने में पीछे नही है। आखिर ऐसी कौन सी बात हो गयी कि डीएफओ कुंदन कुमार का महज तीन महीने के अंदर रामनगर वन प्रभाग में तबादला कर दिया गया। इस लिए खौफ खाते है माफिया असल मे तीन महीने के भीतर ही कुंदन कुमार की ईमादारी को देख खनन माफिया खासे भयभीत नजर आने लगे थे।
चार्ज सम्हालने के तीन महीने के अन्दर ही उन्होंने लगभग एक सौ से भी ज्यादा डंपरों को सीज कर दिया। उपखनिज चोरी के मामले में पकड़े गए लगभग बीस वाहनों को वन अदालत में सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया।
कशीपुर जसपुर आदि क्षेत्रों में लगभग 5 आरा मशीनों को भी डीएफओ कुंदन कुमार ने सीज कर दिया। कुछ वन माफियाओ को भी जेल की सलाखों में पहुचाने का श्रेय डीएफओ कुंदन कुमार को जाता है। रामनगर वन प्रभाग में नही होता खनन असल मे जिस रामनगर वन प्रभाग में कुंदन कुमार को भेजा गया है उनके क्षेत्र के अंतर्गत खनन का कार्य नही आता है।
रामनगर कोसी नदी से नीचे जितना भी खनन होता है वह सब तराई वन प्रभाग के अंतर्गत ही आता है। अब खनन माफियों को पकड़ने के लिए रामनगर वन प्रभाग के डीएफओ कुंदन कुमार का हस्तक्षेप न होने स खनन माफियों के मुरझाए चेहरे पर फिर से चमक दिखाई देने लगी है।
माफिया की आँख की किरकिरी थे डीएफओ रात को खुद वनकर्मियों के साथ गश्त पर जाने वाले कुंदन कुमार की ताबड़तोड़ छापेमारी से वह खुद माफियाओं के आंख की किरकिरी बन चुके थे। सूत्र बताते है कि कुछ लोग रामनगर से देहरादून तक डीएफओ कुंदन कुमार को हटाने की मुहिम में लग गए। आखिर कार उपखनिज की चोरी में लिप्त रहने वाले माफियों की तबादला करने जीत जरूर हुई है। मगर शोशल मीडिया मे डीएफओ के अचानक तबादले ने सरकार को भी कठघरे में खड़ा जरूर कर दिया है।
