अम्बेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर याद किए गए डॉ भीमराव अंबेडकर।

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उधम सिंह राठौर – प्रधान संपादक

व्यापार मंडल कार्यलय में आइसा द्वारा गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की शुरुआत जलियांवाला बाग कांड के शहीदों व अंबेडकर के चित्र पर माल्यार्पण से हुआ। कार्यक्रम में अंबेडकर को याद करते हुए आइसा अध्यक्ष सुमित ने कहा कि, बाबा साहेब आंबेडकर ने जातिगत भेदभाव को झेला, जिसने अंबेडकर के जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव डाला। अंबेडकर ने इस भेदभाव से बचने के लिए अपने पूरे जीवन संघर्ष किया। अंबेडकर ने हमारे देश के संविधान को भेदभाव रहित बनाने का प्रयास किया। और न केवल संविधान बल्कि महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए भी कानून बनाया। और अंबेडकर देश के पहले मंत्री थे जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए बने कानून को पारित न होने पर अपने कानून मंत्री के पद से ही इस्तीफा दे दिया था।

 

 

अंबेडकर ने शिक्षित होने और संगठित होने पर जोर दिया था। जिसका उन्होंने अपने जीवन पर्यंत आगे बढ़ाया। उन्होंने अपनी पढ़ाई को केवल स्वयं तक सीमित नहीं रखा बल्कि अपने पूरे समाज के लिए उपयोग किया। उन्हीं से प्रेरणा लेकर हमे भी अपनी पढ़ाई को समाज के लिए उपयोगी साबित करना है तभी हम एक बेहतर समाज को बना पाएंगे।

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भारत में शोषितों-उत्पीड़ितों की मुखर आवाज और सच्चे लोकतंत्र के सिपाही बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर को आज एक जाति विशेष का नेता बताने की चौतरफा कोशिशें हो रही हैं। पहले भारत के मनुवादियों और फिर आजादी के बाद सत्ता पर काविज राजनीतिक शक्तियों ने उन्हें एक जाति के नेता के रूप में पेश किया।

 

 

उन्होंने कहा कि डॉ भीमराव अम्बेडकर मानते थे कि भारत में जातियों के सम्पूर्ण विनाश के बिना एक लोकतांत्रिक और समता आधारित समाज का निर्माण नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा लोकतंत्र केवल शासन की एक पद्धति ही नहीं है, लोकतंत्र मूलतः सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज के मिले जुले अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है। वर्तमान सरकार जब कारपोरेट कम्पनियों के हित में 44 श्रम कानूनों को खत्म कर नई गुलामी के चार श्रम कोड ले आई है, तब हमें नहीं भूलना चाहिए कि 1937 में कोंकण में बहुजन श्रमिकों के शोषण को रोकने के लिए डॉ अम्बेडकर ने एक विधेयक पेश किया। 1938 में, कोंकण औद्योगिक विवाद विधेयक में श्रमिकों को हड़ताल का कानूनी अधिकार दिलाया।

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उन्होंने बीड़ी मज़दूरों को न्याय दिलाने के लिए बीड़ी संघ की स्थापना की। 2 जुलाई 1942 को वे वायसराय के मंत्रिमंडल में श्रम मंत्री बने। इस दौरान उन्होंने मज़दूरों के लिए कई कानून बनाए। 2 सितंबर 1945 को कामगार कल्याण योजना की शुरुआत की। इस योजना को लेबर चार्टर के नाम से भी जाना जाता है। 14 अप्रैल 1944 को डॉ आंबेडकर ने सवेतन अवकाश पर एक विधेयक पारित किया। श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी तय करने का प्रावधान करने वाला विधेयक पेश किया। इसने न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 को अधिनियमित किया। साथ ही औद्योगिक विवादों को निपटाने के लिए एक सुलह तंत्र (मध्यस्थता तंत्र) स्थापित करने का प्रावधान किया। उन्होंने मज़दूरों के आर्थिक जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए स्वतंत्र लेबर पार्टी के घोषणापत्र में आर्थिक नीति को स्पष्ट किया। उन्होंने सुझाव दिया कि राज्य को श्रमिकों की आर्थिक स्थिति के उत्थान के लिए धन के समान वितरण के प्रयास करने चाहिए। मगर वर्तमान मोदी सरकार डॉ आंबेडकर द्वारा देश के मजदूरों को दिलाए गए इन सभी अधिकारों को एक-एक कर खत्म कर रही है।

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नैनीताल जिले में आइसा की उपसचिव हेमा जोशी ने कहा कि हम अंबेडकर के बताए रास्ते पर चलकर अपने अपने समाज में लोगों को शिक्षित करने का काम कर रहे है और आगे भी इसी तरह करेंगे। जिस से कि हमारा देश शिक्षित बने और अपने समझ के भेदभावों को पढ़ कर और समझ कर खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। इस मौके पर सुमित, सचिन आर्य, भाष्कर प्रशाद, हेमा जोशी, रेखा आर्य, नीरज सिंह, संजय कुमार, अंकित, आदि मौजूद रहे।

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