वन्यजीव संरक्षण में रुकावट: बाघों की मौतों का सर्वेक्षण, बाघों की बढ़ती मौतें: बाघों की संरक्षण की चुनौतियों का सामना।
उधम सिंह राठौर – प्रधान संपादक
उत्तराखण्ड में बाघ (Tiger) की वर्ष 2023 में मृत्यु के आंकड़ों के विषय में मीडिया में विभिन्न समाचार प्रकाशित हुए हैं। उक्त के क्रम में निम्न विवरण विचारणीय हैं :-
उत्तराखण्ड में बाघों की मृत्यु की संख्या
वर्ष 2019
वर्ष 2020
वर्ष 2021
वर्ष 2022
वर्ष 2023 (14 नवम्बर तक )
19
उपरोक्त विवरण के साथ-साथ यह भी अवगत कराना है कि उत्तराखण्ड में वर्ष 2006 में भारत सरकार द्वारा बाघों की अनुमानित संख्या 178 आगणित की गई थी जो वर्ष 2022 में बढ़कर 560 हो गई। विवरण निम्नानुसार है :-
उत्तराखण्ड में बाघों की संख्या
वर्ष 2006
वर्ष 2010
वर्ष 2014
वर्ष 2018
वर्ष 2022
178
227
340
442
560
13
6
10
9
इस प्रकार प्रदेश में बाघों की संख्या में विगत 16 वर्षों में तीन गुणा से भी अधिक वृद्धि हुई है। पूरे विश्व में बाघों का सर्वाधिक घनत्व उत्तराखण्ड में कॉर्बेट टाईगर रिजर्व में अंकित किया गया है। विगत चार वर्षों में यह वृद्धि 26 प्रतिशत से अधिक है। ऐसे में एक न्यूज पोर्टल का यह कथन कि उत्तराखण्ड बाघों के लिए सुरक्षित नहीं है पूरी तरह तथ्यों के विपरीत है। इसका पूर्ण गंभीरता से प्रतिवाद किया जाता है। अपने प्राकृतवास में बाघ की अधिकतम अनुमानित आयु 10 से 12 वर्ष मानी जाती है। भारत में इस वर्ष राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा दिनांक 14 नवम्बर 2023 तक 159 बाघों की मृत्यु का विवरण अंकित किया गया है जो कि विगत वर्षों में अभी तक सर्वाधिक है।
159 बाघों की मृत्यु के विवरण के अनुसार सर्वाधिक मृत्यु की 37 घटनाएँ मध्य प्रदेश से सूचित हैं जहां बाघों की वर्ष 2022 में अनुमानित संख्या 785 अंकित की गई थी। महाराष्ट्र में भी इस वर्ष 37 बाघों की मृत्यु अंकित की गई वर्ष 2022 में बाघों की अनुमानित संख्या 444 अंकित की गई है। इसी प्रकार तमिलनाडु राज्य में 15 बाघों की मृत्यु अंकित की गई है जहां बाघों की वर्ष 2022 में अनुमानित संख्या 306 अंकित की गई है। केरल में 13 बाघों की मृत्यु अंकित की गई है तथा वहां 2022 में बाघों की अनुमानित संख्या 213 है।
प्रदेश में बाघों की मृत्यु की संख्या को भी उपरोक्त बिंदुओं के पूर्ण परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। जन-मानस में इनकी मृत्यु की चिंता सकारात्मक है परंतु प्रदेश में बाघों की बढ़ती संख्या को देखते हुए वर्तमान मृत्यु की संख्या असमान्य अथवा अप्रत्याशित नही मानी जानी चाहिए। प्रदेश में बाघों की आबादी के अनुसार यह मृत्यु दर 3.4 प्रतिशत है जो अपेक्षित से इतर नही है। बाघों की यह मृत्यु दर अन्य अनेक राज्यों की तुलना में अत्यंत न्यून है।
बाघों की मृत्यु की संख्या के साथ-साथ इनके मृत्यु के कारणों की समुचित विवेचना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। अभी तक के प्रत्येक प्रकरण में बाघों की मृत्यु के कारणों की गहनता से जांच की गई है। किसी भी प्रकरण में ऐसे मृत्यु का कोई असामान्य अथवा मानव जनित कारण प्रकाश में नही आया है। कुछ प्रकरणों में जांच अभी प्रगति में हैं तथा उनका भी विवरण प्राप्त होने पर निष्कर्षो के आधार पर अपेक्षित कार्यवाही की जायेगी।
प्रदेश में बाघों के वासस्थल वाले क्षेत्र में सघन गश्त बढ़ा दी गई है तथा उसका अनुश्रवण भी नियमित रूप से संबंधित वन संरक्षक एवं मुख्य वन संरक्षक द्वारा की जा रही है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि घने जंगलों में ऐसे किसी वन्यजीव की प्राकृतिक मृत्यु होने पर उनके शव को गश्त के दौरान खोज पाना भी कठिन होता है। वन कर्मियों को कड़े निर्देश हैं कि ऐसे किसी भी प्रकरण के प्रकाश में आने पर गहन छानबीन कर समस्त तथ्य सामने लाये जायें।
/14/11/23 (डा० समीर सिन्हा)
प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) / मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक,
उत्तराखण्ड |

