कुमाऊनी के आदि कवि की जयंती मनाई।

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गूरजोत सिंह राठौर – संंवाददाता

पी.एन.जी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय रामनगर नैनीताल के हिंदी विभाग में आज कुमाऊनी के आदि कवि पंडित लोग रत्न पंत गुमानी की जयंती धूमधाम से मनाई गई इस अवसर पर डॉ. जी. सी. पंत एसोसिएट प्रोफेसर हिंदी ने रोक रत्न पंत गुमानी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मूलत: जनपद पिथौरागढ़ के तहसील गंगोलीहाट ग्राम उपराडा के रहने वाले लोक रत्न पंत गुमानी का जन्म 11 मार्च 1790 को काशीपुर में हुआ था । इनके पिता का नाम पंडित देवनिधि पंत एवं माता का नाम मंजरी देवी था इनका विवाह 24 वर्ष की उम्र में हो गया था।

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इनकी अधिकांश रचनाएं संस्कृत भाषा में लिखी हुई है। संस्कृत, खड़ी बोली, नेपाली एवं फारसी भाषा के यह उद्भट विद्वान थे यह खड़ी बोली के प्रथम कवि होने के साथ-साथ प्रथम राष्ट्रीय कवि भी थे चंद राजा गुमान सिंह और टिहरी नरेश सुदर्शन शाह के राज दरबार के यह प्रमुख कवि थे तत्काल कविता की रचना कर देने की प्रतिभा होने से यह आशु कवि कहलाए यह संस्कृत खड़ी बोली कुमाऊनी एवं नेपाली भाषा में एक साथ कविता लिखने की प्रतिभा रखते थे सन 1846 में 56 वर्ष की उम्र में कुमाऊनी के इस आदिकवि का देहावसान हो गया था ।

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इस अवसर पर उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय की पीएनजी शाखा के समन्वयक डॉ किरण कुमार पंत ने उनकी खड़ी बोली की कविताओं का जिक्र करते हुए कहा कि उत्तराखंड के माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा में गुमानी जी की रचनाएं पाठ्यक्रम में शामिल होनी चाहिए इस अवसर पर डॉ. प्रीति त्रिवेदी, डॉक्टर दुर्गा तिवारी, डॉक्टर के. के. पंत डॉक्टर डी.एन. जोशी डॉक्टर अनिता जोशी, डॉक्टर पी. सी. पालीवाल एवं हिंदी विभाग के विद्यार्थी उपस्थित थे महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर एम.सी. पांडे ने बताया कि गोरखा शासन एवं अंग्रेजों के शासन को लेकर इनके द्वारा लिखी गई कविताएं इनके देश प्रेम को प्रदर्शित करती हैं।

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