मानव- बाघ संघर्ष को कम करने व सह-अस्तित्व की ओर बढ़ने हेतु कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक धीरज पांडे के नेतृत्व में सी टी आर एक कार्यशाला का हुआ अयोजन।

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उधम सिंह राठौर – प्रधान सम्पादक

उत्तराखण्ड में इंसानों पर तेंदुए, बाघ या भालू के हमले की घटना की प्रिंट व इलैक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्ट के बिना लगभग कोई भी महीना नहीं जाता। पिछले दो दशकों में, उत्तराखण्ड में मानव वन्यजीव संघर्ष के कारण औसतन एक वर्ष में लगभग 50 व्यक्तियों की मृत्यु हुई है। इसके अलावा, पिछले दो दशकों में मानव वन्यजीव संघर्ष के कारण, उत्तराखण्ड में लगभग 200 व्यक्तिप्रतिवर्ष घायलहोते हैं। मानव वन्यजीव संघर्ष से इंसानों की होने वाली लगभग आधी मृत्यु का कारण तेंदुए और बाघ का इंसानों पर हमला है।

 

 

 

मानव वन्यजीव संघर्ष की समस्या केवल उत्तराखण्ड राज्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश भर में यह संघर्ष अलग-अलग रूप व तीव्रता में देखा गया है। हर राज्य में वन और वन्यजीव प्रबंधक इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए नित नए तरीके आजमाते रहते हैं। नए समाधान लगातार विकसित हो रहे हैं। एक ऐसा मॉडल जिसने कई राज्यों में सफलता देखी है, वह है “सह-अस्तित्व। अन्य राज्यों में वन विभागों के साथ हमारे जुड़ाव से पता चला कि महाराष्ट्र वन विभाग ने “सह–अस्तित्व” मॉडल का उपयोग करके मनुष्यों के साथ तेंदुए के संघर्ष को सफलतापूर्वक कम कर दिया है, जहां मानव और वन्यजीव एक-दूसरे के साथ सौहार्दपूर्वक रहना सीख रहे हैं।

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पिछले 5 वर्षों में, उत्तराखण्ड वन विभाग में उत्कृष्ट परिणामों के साथ टिहरी, नरेंद्रनगर और पिथौरागढ़ वन प्रभागों में “तेंदुए के साथ रहने (लिविंग विद लैपर्ड ) का कार्यक्रम शुरू किया। इन कार्यक्रमों को महराष्ट्र वन विभाग, डब्ल्यू०सी०एस०-इंडिया, बेंगलुरू और तितली ट्रस्ट, देहरादून जैसे कई संगठनों के सहयोग से निष्पादित किया गया था और अन्य राज्यों से उनकी सीख को उत्तराखण्ड में लागू होने वाले कार्यक्रमों में शामिल किया गया था। ज्ञान के इन आदान-प्रदान में से एक प्रमुख सीख थी, कि तेंदुओं / बाघों को पकड़ने और स्थानांतरित करने या उन्हें मारने का पारंपरिक दृष्टिकोण संघर्ष को कम नही करता है, वास्तव में, यह समय के साथ संघर्ष को बढ़ाता है।

 

 

 

वर्ष 2017 से 2020 के मध्य टिहरी में “लिविंग विद लेपर्ड्स” कार्यक्रम लागू किया गया। टिहरी वन प्रभाग ने मानव वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण के स्थान पर अग्रसक्रिय होने के दृष्टिकोण को अपनाया। प्रभाग की रैपिड रिस्पांस टीम कोमानव तेंदुए संघर्ष से निपटने के लिए सुसज्जित और प्रशिक्षित किया गया था। सभी स्तरों पर वन विभाग के कर्मचारियों, स्थानीय समुदाय, स्कूली बच्चों, प्रिंट व इलैक्ट्रानिक मीडिया, पुलिस, नागरिक प्रशासन और स्थानीय राजनीतिक नेताओं को शामिल करते हुए एक जन-जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया था। मानव वन्यजीव संघर्ष न्यूनीकरण की इस रणनीति के परिणामस्वरूप, 4 वर्षों की अवधि में टिहरी जनपद में मानव वन्यजीव संघर्ष की कुल घटनाओं में एक-चौथाई की कमी आई (तालिका -1 ) ।

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तालिका 1 : टिहरी वन प्रभाग में तेंदुए के इंसानों पर हमलों का विवरण

वर्ष- 2006-2009- 2010-2013 2014-2016 – 2017-2020

घायलों की संख्या – 30 –  29  – 25 – 09

मृतकों की संख्या  – 07 – 08  – 07

कुल संख्या –  37  – 37  –  32   – 13

टिहरी वन प्रभाग में “लिविंग विद लेपर्डस” कार्यक्रम की सफलता के बाद, नरेंद्रनगर वन प्रभाग और पिथौरागढ़ वन प्रभाग में टिहरी से सीखे गए अनुभवों और इन प्रभागों में प्राप्त परिणामों को अपनाते हुए इसी प्रकार के कार्यक्रम शुरू करने का निर्णय लिया गया, जिसके परिणाम अत्यंत सकारात्मक रहे।

 

 

 

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हम अब कॉर्बेट लैंडस्केप में भी इसी प्रकार एक समान सह-अस्तित्व मॉडल “लिविंग विद टाइगर्स” शुरू करने का प्रयास कर रहे हैं। इस पहल में कार्बेट टाइगर रिजर्व के अन्तर्गतपूर्ण रुप से सुसज्जित और प्रशिक्षित त्वरित कार्यवाही दलोंकेगठन तथा इनकार्यवाही दलों द्वारा उच्च संघर्ष वाले क्षेत्रों में बाघ और तेंदुए के देखे जाने पर सक्रिय रूप से तत्काल संघर्ष के न्यूनीकरण किये जाने हेतु कार्यवाही की जायेगी। इसके अतिरिक्त सभी प्रमुख हितधारकों यथा-मीडिया, स्थानीय समुदाय, पर्यटकों, होटलों, वाहन सेवा प्रदाताओं, स्कूलों और संस्थानों, पुलिस, गैर सरकारी संगठनों, शोधकर्ताओं, राजनैतिक प्रतिनिधियों और वन विभाग के कर्मियों को शामिल करते हुए एक जन-जागरूकता और संवेदनशील कार्यक्रम कॉर्बेट लैंडस्केप में शुरू किया जाएगा, जिसमें कार्बेट टाइगर रिजर्व की परिधि में मानव – बाघ संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले स्थानीय निवासियों को “बाघ मित्र / वन मित्र” के रुप में सह-अस्तित्व की और प्रेरित करने तथा वन्यजीव संरक्षण से जोडने हेतु सार्थक पहल की जा सके।

 

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