फर्जी निकला वन निगम का तथाकथित ठेकेदार राहत अली, ईमानदार पत्रकारों को बदनाम करने की साजिश नाकाम।

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फर्जी निकला वन निगम का तथाकथित ठेकेदार राहत अली, ईमानदार पत्रकारों को बदनाम करने की साजिश नाकाम।

रामनगर (उत्तराखंड)। संवाददाता – सलीम अहमद साहिल।


रामनगर में ईमानदार पत्रकारों को बदनाम करने की एक बड़ी साजिश नाकाम हो गई है। तथाकथित ठेकेदार राहत अली, जो खुद को वन निगम का अधिकृत ठेकेदार बताकर पत्रकारों पर झूठे आरोप लगा रहा था, आखिरकार बेनकाब हो गया है। वन निगम ने स्पष्ट किया है कि राहत अली नामक व्यक्ति का वन निगम से कोई संबंध नहीं है।

सूत्रों के अनुसार, राहत अली ने कुछ तथाकथित शराबी और जुआरी पत्रकारों के साथ मिलकर रामनगर के पत्रकार सलीम अहमद साहिल और काशीपुर के पत्रकार अजहर मलिक के खिलाफ साजिश रची। आरोप है कि रेत माफियाओं से 50 हजार रुपए लेकर दोनों पत्रकारों की छवि खराब करने का प्रयास किया गया।

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साजिश के तहत राहत अली ने पहले एक वीडियो तैयार कराया, जिसमें खुद को वन निगम का ठेकेदार बताते हुए दोनों पत्रकारों के नाम से जोड़कर अफवाहें फैलायीं। इसके बाद कुछ फर्जी फेसबुक पत्रकारों के जरिये एक प्रेस वार्ता आयोजित कर मनगढ़ंत आरोप लगाए गए। हालांकि, वन निगम के अधिकारियों ने राहत अली के दावों को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि राहत अली न तो वन निगम का ठेकेदार है और न ही उसे कोई कार्य दिया गया है।

वन निगम के डीएलएम गोपाल सिंह बिष्ट ने भी राहत अली के दावों को झूठा करार देते हुए कहा कि वन निगम का इससे कोई लेना-देना नहीं है। वन निगम की तरफ से चेतावनी दी गई है कि अगर राहत अली ने निगम का नाम बदनाम किया तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

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बताया जा रहा है कि काशीपुर में पहले ही अपनी विश्वसनीयता खो चुके राहत अली ने रामनगर को नया ठिकाना बना लिया था। लेकिन पत्रकारों की सक्रियता और सजगता से उसकी साजिश नाकाम हो गई।

उल्लेखनीय है कि पत्रकार सलीम अहमद साहिल और अजहर मलिक पिछले चार–पांच वर्षों से रामनगर और काशीपुर क्षेत्र में वन निगम, वन विभाग और कॉर्बेट नेशनल पार्क में अवैध कटान, अवैध खनन तथा अवैध मिट्टी खुदाई जैसे मामलों को उजागर करते रहे हैं। इनके खुलासों के चलते कई अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई भी हुई थी। इसी कारण ये हमेशा से काले कारोबारियों और रेत माफियाओं के निशाने पर रहे हैं।

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जानकार सूत्रों का कहना है कि राहत अली के फोन की कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) निकाली जाए तो तस्करों और उसके बीच के संबंधों की कई परतें खुल सकती हैं।

अब पूरा मामला प्रशासन और वन विभाग के संज्ञान में है। स्थानीय पत्रकारों और आम नागरिकों ने मांग की है कि राहत अली और उससे जुड़े तथाकथित पत्रकारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में इस तरह के झूठे षड्यंत्र दोबारा न हो सकें।