65 साल से बसे ग्रामीणों का मालिकाना हक़ पर संघर्ष, फर्जी शिकायतों के निशाने पर सलीम, प्रशासन से मिला अतिक्रमण का नोटिस।

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65 साल से बसे ग्रामीणों का मालिकाना हक़ पर संघर्ष, फर्जी शिकायतों के निशाने पर सलीम, प्रशासन से मिला अतिक्रमण का नोटिस।

 

उधम सिंह राठौर – प्रधान संपादक

रामनगर।
रामनगर तहसील क्षेत्र के मालधनचौड़ और शिवनाथपुर पुरानी बस्ती में बसे करीब 500 परिवार पिछले छह दशकों से अधिक समय से अपनी ज़िंदगी बसर कर रहे हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी यहां खेती-बाड़ी कर परिवार पालने वाले इन ग्रामीणों के सामने आज सबसे बड़ा सवाल मालिकाना हक़ का है। बिजली, पानी, सड़क, स्कूल और आंगनबाड़ी जैसी मूलभूत सुविधाएं यहां मौजूद होने के बावजूद ग्रामीण अब भी ज़मीन के अधिकार से वंचित हैं।

खेती-बाड़ी ही रोज़गार का सहारा

ग्रामीणों का कहना है कि उनका जीवन पूरी तरह खेती पर निर्भर है। यही उनकी रोज़ी-रोटी का एकमात्र साधन है। रोजगार का कोई और विकल्प न होने के कारण अगर उन्हें ज़मीन से उजाड़ा गया, तो उनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।

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फर्जी शिकायतें और माफियाओं की दबंगई

ग्रामीणों का आरोप है कि आपराधिक प्रवृत्ति के कुछ लोग सीएम हेल्पलाइन का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। ये लोग फर्जी शिकायत दर्ज कराकर प्रशासन से नोटिस दिलवाते हैं और फिर शिकायत वापस लेने के एवज में पैसों की मांग करते हैं। ग्रामीणों ने ऐसे माफियाओं के खिलाफ पहले से ही कई मुकदमे दर्ज होने की बात कही है। उनके मुताबिक, ये लोग अवैध गतिविधियों में लिप्त हैं और प्रशासनिक तंत्र को गुमराह कर गरीब परिवारों पर दबाव बना रहे हैं।

हाल ही में इन्हीं फर्जी शिकायतों के आधार पर प्रशासन ने सलीम उर्फ साहिल को अतिक्रमण हटाने का नोटिस थमा दिया। ग्रामीणों का कहना है कि शिकायत करने वाले अब खुलेआम पैसों की मांग कर रहे हैं, जिससे पूरे इलाके में तनाव और आक्रोश है।

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ग्रामीणों का विरोध और चेतावनी

नोटिस मिलने से गुस्साए ग्रामीण बड़ी संख्या में तहसील कार्यालय पहुंचे और एसडीएम को ज्ञापन सौंपा। ग्रामीणों ने साफ चेतावनी दी कि अगर गरीब और असहाय परिवारों के खिलाफ कार्रवाई की गई, तो वे उग्र आंदोलन करने को मजबूर होंगे।

ग्रामीण प्रतिनिधि राहुल कांडपाल ने कहा कि दशकों से यहां रह रहे लोगों को मालिकाना हक़ दिलाना सरकार की जिम्मेदारी है। वहीं सफीक अहमद समेत कई ग्रामीणों ने कहा कि प्रशासन को असल समस्या समझकर माफियाओं के दबाव में न आकर सच्चाई के आधार पर फैसला लेना चाहिए।

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प्रशासन की भूमिका पर सवाल

इस पूरे प्रकरण में प्रशासन की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। ग्रामीण पूछ रहे हैं कि जब सरकार की योजनाएं इन्हीं परिवारों के नाम पर चल रही हैं, बी.पी.एल. सूची में उनके नाम हैं और यहां तक कि विकासखंड ऑफिस तक इन्हीं गांवों से जुड़ी सुविधाएं दे रहा है, तो फिर उन्हें मालिकाना हक़ क्यों नहीं दिया जा रहा?

अंतिम सवाल

आक्रोशित ग्रामीणों का कहना है कि अगर दशकों से यहां बसे परिवारों को उजाड़ा गया, तो यह उनके साथ अन्याय होगा। अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार और प्रशासन इन परिवारों को मालिकाना हक़ देकर उनके जीवन में स्थिरता लाते हैं या फिर नोटिस और आरोपों के बीच उनकी जद्दोजहद और बढ़ जाएगी।