मकर संक्रांति कब होती है। कैसे करें पूजा अर्चना..??

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सूर्यदेव जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब मकर संक्रांति कहलाती है। लेकिन इस वर्ष सूर्य के राशि बदलने को लेकर पंचांग में मदभेद होने के कारण मकर संक्रांति कही 14 तो कहीं 15 जनवरी को मनाई जा रही है। गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश में संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जा रही है। वहीं बनारस, उज्जैन और देश के बाकी हिस्सों में पंचांग के अनुसार सूर्य 14 जनवरी की रात करीब 08 बजकर 49 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इस कारण से कुछ लोग 15 जनवरी को मकर संक्रांति मना रहे हैं। अलग अलग जगहों के अक्षांश-रेखांश के अनुसार सूर्योदय के परिणामस्वरूप सूर्य के राशि परिवर्तन में समयांतर हो जाता है। इस बार भी यही भ्रम रहेगा कि संक्रांति 14 या 15 जनवरी को मनाया जाए। वाराणसी के पंचांगों के साथ-साथ देश के अन्य भागों के अधिकतर पंचांगों में सूर्य का राशि परिवर्तन 14 जनवरी की रात्रि 08 बजे के बाद दिखा रहा है अतः वाराणसी के पंचांग के अनुसार संक्रांति पर्व निर्विवाद रूप से 15 जनवरी को ही मनाया जाएगा। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही सभी तरह के मांगलिक कार्य जैसे यज्ञोपवीत, मुंडन, शादी-विवाह, गृहप्रवेश आदि आरम्भ हो जाएंगे। सूर्य की दक्षिणायन यात्रा के समय जो देवप्राण शक्तिहीन हो गये थे उनमें पुनः नई ऊर्जा शक्ति का संचार हो जाएगा और वे अपने भक्तों-साधकों को यथोचित फल देने में सामर्थ्यवान हो जाएंगे।

 

मकर संक्रांति पर स्नान-दान :-

इस पर्व पर समुद्र में स्नान के साथ-साथ गंगा, यमुना, सरस्वती, नमर्दा, कृष्णा, कावेरी आदि सभी पवित्र नदियों में स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देने से पापों का नाश तो होता ही है पितृ भी तृप्त होकर अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं यहां तक कि इस दिन किए जाने वाले दान को महादान की श्रेणी में रखा गया है। वैसे तो सभी संक्रांतियों के समय जप-तप तथा दान-पुण्य का विशेष महत्व है किन्तु मेष और मकर संक्रांति के समय इसका फल सर्वाधिक प्रभावशाली कहा गया है उसका कारण यह है कि मेष संक्रांति देवताओं का अभिजित मुहूर्त होता है और मकर संक्रांति देवताओं के दिन का शुभारंभ होता है। इस दिन सभी देवता भगवान  श्री विष्णु और मां श्रीमहालक्ष्मी का पूजन-अर्चन करके अपने दिन की शुरुआत करते हैं अतः श्रीविष्णु के शरीर से उत्पन्न तिल के द्वारा बनी वस्तुएं और श्रीलक्ष्मी के द्वारा उत्पन्न इक्षुरस अर्थात गन्ने के रस से बनी वस्तुएं जिनमें गुड़-तिल का मिश्रण हो उसे  दान किया जाता है।

 

मकर संक्रांति पर तीर्थपतियों का प्रयाग आगमन :-

सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और माघमाह के संयोग से बनने वाला यह पर्व सभी देवों के दिन का शुभारंभ होता है। इसी दिन से तीनों लोकों में प्रतिष्ठित तीर्थराज प्रयाग और गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगमतट पर साठ हजार तीर्थ, नदियां, सभी देवी-देवता, यक्ष, गन्धर्व, नाग, किन्नर आदि एकत्रित होकर स्नान, जप-तप, और दान-पुण्य करके अपना जीवन धन्य करते हैं। तभी इस पर्व को तीर्थों और देवताओं का महाकुंभ पर्व कहा जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार यहां की एक माह की तपस्या परलोक में एक कल्प (आठ अरब चौसठ करोड़ वर्ष) तक निवास का अवसर देती है इसीलिए साधक यहां कल्पवास भी करते हैं।

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