पवित्र संस्थान- सांस्कृतिक विविधता, जैव विविधता और नंदा राज जात यात्रा के बीच संबंध पर एक वार्ता”

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उधम सिंह राठौर – सम्पादक

पीएनजी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय रामनगर नैनीताल के कैरियर काउंसलिंग सेल एवं जंतु विज्ञान विभाग द्वारा “गुरु दिवस व्याख्यान माला” के रूप में एक सतत ऑनलाइन व्याख्यान माला का आयोजन किया । व्याख्यान का विषय “ पवित्र संस्थान- सांस्कृतिक विविधता, जैव विविधता और नंदा राज जात यात्रा के बीच संबंध पर एक वार्ता” व्याख्यान माला का शुभारंभ कार्यक्रम निदेशक प्राचार्य प्रो. एम.सी. पांडे ने किया तथा आयोजक सचिव डॉ भावना पंत प्रभारी जंतु विज्ञान विभाग ने समस्त अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत कर मुख्य वक्ता का परिचय प्रस्तुत किया जिसमें मुख्य वक्ता प्रोफेसर सी एस नेगी विभागाध्यक्ष एमबीपीजी कॉलेज हल्द्वानी द्वारा अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया “ भारत ही नहीं अपितु विश्व में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग आज भी धार्मिक आस्था पर विश्वास करते हैं हिमालय महाकुंभ के नाम से विख्यात व विश्व की सबसे लंबी पैदल धार्मिक यात्रा राजजात यात्रा अपने आप में अद्भुत और रोमांचकारी यात्रा है गढ़वाल और कुमाऊं की सांस्कृतिक विरासत नंदा राज जात यात्रा कई रास्तों और दुर्गम स्थानों बर्फीले पहाड़ों चोटियों से होते हुए अपने रहस्य और रोमांच को संजोए हुए हैं 280 किलोमीटर की यात्रा 20 दिनों में 20 स्थानों से होकर गुजरती है आमतौर पर यह यात्रा 12 वर्ष के पश्चात एक बार आयोजित की जाती है जिसमें कुमाऊं गढ़वाल ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक विदेशी सैलानी भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं यह यात्रा सर्वप्रथम नौटी गांव से शुरू होकर रूपकुंड होते हुए हेमकुंड पर अपने अंतिम पड़ाव पर खत्म होती है जो समुद्र तल से अट्ठारह सौ फीट ऊंचाई पर है नौटी गांव पर मां नंदा देवी की स्वर्ण प्रतिमा पर प्राण प्रतिष्ठा के साथ रिंगल की पवित्र राज- छतोली और चौसिंग्या खाडू़ की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है इस यात्रा का मुख्य आकर्षण चौसिंग्या खाडू़ चार सिंग वाला भेड़ होता है जो स्थानीय क्षेत्र में राजजात यात्रा शुरू होने से पहले मनौती के बाद पैदा होता है और पूरी यात्रा की अगवाई करता है जो हेमकुंड में पूजा के पश्चात हिमालय की ओर प्रस्थान करता है और विलुप्त हो जाता है जो आज भी रहस्य का विषय बना है पहले दशक में कुलपुरोहित , कुंवर (राज वंशज) एवं राजपुरोहित ही इस यात्रा पर प्रतिभाग करते थे किंतु वर्तमान समय में यह विशेष ख्याति प्राप्त कर चुकी है जिसके कारण वर्तमान में पर्यावरण विशेषज्ञों व विद्वानों को पर्यावरण से संबंधित चिंता बन गई है | अत्यधिक लोगों के यात्रा में शामिल होने के कारण विभिन्न पड़ावों में रात्रि विश्राम और होने के कारण एवं भोजन व्यवस्था पर उपयोग होने वाले ईंधन से उष्मा से तापमान में वृद्धि होती है एवं ग्लेशियर के अकारों में बदलाव एवं पिघलने का सिलसिला जारी है अधिक ऊंचाई पर पाए जाने वाला ब्रह्म कमल इस यात्रा के दौरान अपने अस्तित्व को खतरे में बनाए हुए हैं माना जाता है कि यह मन्नत पुरी करने वाला देवी मां का सबसे विशेष प्रिय पुष्प है अत्यधिक ऊंचाई में पाए जाने वाले औषधि पेड़ों पौधों की जैव विविधता पर भी प्रभाव पड़ रहा है यात्रा के दौरान पूजा सामग्री में होने वाले सामान एवं प्लास्टिक कूड़ा अवशेषों से पहाड़ियों पर गंदगी का आलम बना है | इस संदर्भ में आयोजन सचिव डॉ भावना पंत ने इस विश्व प्रसिद्ध यात्रा और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने हेतु समाज में जनजागृति पर्यावरण से संबंधित जानकारी को साझा करना होगा ताकि हमारी संस्कृत धरोहर जैव विविधता पर प्रभाव भी ना पड़े और हमारी मान्यता और संस्कृति भी बनी रहे , हर वर्ष 12 वर्ष के बाद मनाई जाने वाली इस यात्रा को सुचारू रूप से मनाने में अपनी संस्कृति अपने रिवाज अपने पर्यावरण संसार को भी सुरक्षित रखें तभी तभी हम सच्चे अर्थों में कुलदेवी मां का आशीर्वाद प्राप्त कर सकेंगे |अंत में जंतु विज्ञान विभाग के डॉ. प्रदीप पांडे तथा डा. रागिनी गुप्ता ने समस्त अतिथियों एवं प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।श्री एस .सी .पंत रिटायर्ड ए .सी .एफ , डा. प्रीतित्रिवेदी,डा. गिरीश पंत, डॉ. एस एस मोरिया, डा. जगमोहन नेगी, डा. किरण कर्नाटक, डा. निवेदिता अवस्थी, डा. शिप्रा पंत,डा. धीरेन्द्र सिंह, डा. कुसुम गुप्ता, डा. अनुराग श्रीवास्तव, डा. दीपक खाती, डा. योगेश, डा. प्रमोद पांडे, डा के. के. पंत, डा प्रतिमा तथा शोध छात्रों ने प्रतिभाग किया।

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