जोशीमठ मंदिर के पास जलधारा सूखने से श्रद्धालुओं में चिंता, संरक्षण की मांग तेज।
उधम सिंह राठौर – प्रधान संपादक
जोशीमठ (चमोली)। आध्यात्मिक और प्राकृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध जोशीमठ क्षेत्र इन दिनों एक गंभीर पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहा है। जोशीमठ मंदिर के पास बहने वाली एक प्रमुख जलधारा के सूख जाने से स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं में भारी चिंता व्याप्त है। यह धारा न केवल धार्मिक महत्व रखती थी, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी और आजीविका का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत थी।
स्थानीय निवासियों और पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि यह जलधारा वर्षों से निरंतर प्रवाहित होती आ रही थी, लेकिन अब इसका जलस्तर अत्यधिक कम हो गया है और कई स्थानों पर यह पूरी तरह सूख चुकी है। श्रद्धालुओं का मानना है कि यह स्थिति न केवल पर्यावरणीय असंतुलन को दर्शाती है, बल्कि आस्था पर भी एक गहरा आघात है।
जानकारों के अनुसार, इस संकट के पीछे कई कारण हो सकते हैं—जैसे जलवायु परिवर्तन, बेतरतीब निर्माण कार्य, वनों की कटाई और जल स्रोतों के प्राकृतिक मार्गों में बाधा। स्थानीय लोगों ने इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकार से जल्द से जल्द वैज्ञानिक जांच कराने और प्रभावी कदम उठाने की मांग की है।
एक जागरूक नागरिक द्वारा राज्य सरकार को भेजे गए पत्र में इस समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कुछ अहम सुझाव भी दिए गए हैं, जिनमें क्षेत्र में जल विज्ञान आधारित अध्ययन कराना, वाटरशेड और भूजल पुनर्भरण परियोजनाएं शुरू करना, अनियंत्रित निर्माण कार्यों को नियंत्रित करना और स्थानीय समुदाय को संरक्षण कार्यों में शामिल करना शामिल है।
जोशीमठ की यह जलधारा केवल पानी का स्रोत नहीं, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं की पहचान भी है। ऐसे में इसकी रक्षा करना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।

