राजकीय प्राथमिक विद्यालय के मासूम बच्चों का भविष्य अंधकार में, बच्चों की जिंदगी से पूरा सिस्टम खिलवाड़ करता हुआ। देखिये वीडियो।

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संवाददाता- सलीम अहमद साहिल

 

राजकीय प्राथमिक विद्यालय के मासूम बच्चों का भविष्य अंधकार में भले ही प्रदेश के मुखिया अच्छी शिक्षा की बात करते हो और प्रदेश के कैबिनेट मंत्री बारिश कंट्रोल करने वाला ऐप लॉन्च करने की बात करते हो, लेकिन आज भी उसी प्रदेश में मौत के मुंह में बैठकर पढ़ने को बचे मजबूर है सरकारी स्कूलों की इमारतों की हालत बदहाल है, जिन जंगलों में जंगली जानवरों का खतरा हो उन जंगलों के बीच खुले आसमान के नीचे बच्चे पढ़ने को मजबूर हूं, जहां बच्चों की जिंदगी से पूरा सिस्टम खिलवाड़ करता हुआ दिखाई दे रहा है, देखिए हमारी एक ही स्पेशल रिपोर्ट।

 

 

 

जरा सोचिए जहां चारों तरफ जंगली जानवरों का खतरा हो और शिकारी जानवर अपने शिकार की तलाश में भटकते हुए आसानी दिखाई दे जाएंगे, जहां घर से निकलने पर लोगों की रूह कांपती हो, ऐसी जगह पर सरकारी स्कूल के बच्चे बाहर खुले में नीचे बैठकर पढ़ने को मजबूर हो, सरकारी स्कूल की बिल्डिंग की स्थिति ऐसी हो कि कोई भी आसानी से जानवर अंदर घूस जाए बदलते इस डिजिटल युग मे भी कुछ ऐसे राजकीय प्राथमिक विद्यालय हैं जहाँ मासूम बच्चे आज भी जमीन पर बैठकर शिक्षा लेने को मजबूर हैं। ओर सर छुपाने को भी व्यकल्पिक व्यवस्था कई बर्षो से चली आ रही हैं । रामनगर विधानसभा के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित खत्तों में संचालित राजकीय प्रथमिक विद्यालयो की स्थिति बहुत ही दयनीय हैं विद्यालय का संचालन बर्ष 2013 में हुआ था लेकिन आज तक भी राजकीय प्राथमिक विद्यालय कुमगाडार सेकेंड में ना बच्चों बैठने की सही व्यवस्था हैं और ना सर छिपाने की कोई उचित व्यवस्था हैं। जंगलों में रहने वाले गरीब बच्चों के परिजनों का इतना सामर्थ्य भी नजर नही आता है कि वो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा लेने के लिए कही बाहर भेज सके। दो वक्त की रोजी रोटी के लिए दिन रात मेहनत करते ये गरीब परिवार जैसे तैसे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे है।

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राजकीय प्रथमिक विद्यालय के पांच सौ मीटर की दूरी पर स्थित ईको टूरिस्ट जॉन फाटो में दो दिन से वाघो में संघर्ष हो रहा हैं। जिस कारण से टूरिस्ट जोन में घूमने आने वाले टूरिस्टों पे भी रोक लगा दी गई हैं। जरा सोचिए जंगली जानवरों के खोफ में भी मासूम बच्चों को परिजन पढ़ा रहे है ताकि उनके बच्चों का भविष्य सुधर सके लेकिन सरकार और शिक्षा विभाग के अधिकारी गहरी नींद में सोए हैं और किसी बड़ी अनहोनी का इन्तेजार कर रहे है।

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उत्तराखंड की स्थापना होने के बाद प्रदेश की सरकारों ने भले ही बेहतर शिक्षा की बात की हो लेकिन आज भी शिक्षा का स्तर सरकार के खोखले वादों की पोल खोलने में लगा हुआ है मासूम नौनिहाल मौत के मुंह में बैठकर पढ़ने को मजबूर है। और सरकारी नुमाइंदों का ध्यान इस ओर नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सरकार किस अनहोनी का इंतजार कर रही है आखिर कब सरकार इन स्कूलों की इमारतों को तैयार कर कर बच्चों को महफुज जगह पर शिक्षा ग्रहण करने की उचित ओर स्थाई व्यवस्था उपलब्ध कराती हैं।

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