कॉर्बेट पार्क में राज्यपाल का दिखे हाथी और बाघ, वन्यजीव प्रेमियों के लिए रोमांचकारी जंगल: राज्यपाल
उधम सिंह राठौर – प्रधान संपादक
कॉन्फ्रेंस उद्देश्य: उत्तराखंड में संरक्षण और समुदाय: सद्भाव का एक प्रमाण।
दिनांक/बैठक स्थल: अपराह्न 13 जून 2024, ढिकुली, रामनगर।
उपस्थिति: महामहिम राज्यपाल ले०ज० (से०) गुरमीत सिंह डा० धनंजय मोहन, प्रमुख वन संरक्षक (HoFF) उत्तराखण्ड; डा० समीर सिन्हा, प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) एवं मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक, उत्तराखण्ड; नरेश कुमार, मुख्य वन संरक्षक, गढ़वाल; पी०के० पात्रो, मुख्य वन संरक्षक, कुमाऊँ; डा० धीरज पाण्डेय, फील्ड डायरेक्टर, कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व; डा० विनय भार्गव, वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त; डा० कोको रोसे, वन संरक्षक, उत्तरी कुमाऊँ वृत्त; श्री० टी०आर० बीजू लाल, वन संरक्षक, दक्षिणी कुमाऊँ वृत्त, प्रभागीय वनाधिकारी अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, रामनगर, उप निदेशक राजाजी टाइगर रिजर्व एवं सहायक वन संरक्षक।
महामहिम राज्यपाल द्वारा कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में क्षेत्र भ्रमण के दौरान फील्ड कर्मचारियों से वार्ता की एवं उनका कुशल क्षेम जाना व उत्साहवर्धन किया तथा वन्य जीवों के संरक्षण के प्रति सतत योगदान व प्रयासों की तारीफ की। सफारी के दौरान महामहिम राज्यपाल को सात बाघ और दो सौ से ज़्यादा हाथियों और अनेकों दुर्लभ पक्षियों का दीदार किया। उनके द्वारा वन्य जीव प्रबन्धन की व्यावहारिक जानकारी भी साझा की गई।
महामहिम राज्यपाल द्वारा कॉन्फ्रेंस का शुभारम्भ करते हुए अपने उद्बोधन में भव्य हिमालय से लेकर उष्णकटिबंधीय मैदानों तक, उत्तराखंड का विविध परिदृश्य, वनस्पतियों और जीवों की एक समृद्ध श्रृंखला की महत्ता को उजागर किया, जिसमें उत्तराखण्ड राज्य भारत में विज्ञान-आधारित वन प्रबंधन में अग्रणी योगदान की प्रशंसा की गई। उनके द्वारा राज्य अपनी 15% भूमि को आच्छादित करने वाले संरक्षित क्षेत्र, जिसमें कॉर्बेट और फूलों की घाटी जैसे विश्व स्तर पर प्रसिद्ध राष्ट्रीय उद्यान शामिल हैं, बदलते सामाजिक परिपेक्ष्य में मानव वन्य जीव संघर्ष निवारण, वनाग्नि प्रब्नधन एवं ईको टूरिज्म से आजीविका संवर्धन जैसे मुद्दों से सम्बन्धित विविध विषयों पर वक्तव्य देते हुए इन विषयों पर विभागीय प्रयासों की अनुशंसा की।
डा० धनंजय मोहन, प्रमुख वन संरक्षक (HoFF) उत्तराखण्ड द्वारा जानकारी दी गई कि प्रदेश में सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से, बाघों की आबादी 178 से बढ़कर 560 हो गई है, और पक्षी विविधता 710 प्रजातियों के साथ विकसित हुई है। स्थानीय समुदाय, अपने वन संसाधनों से गहराई से जुड़े हुए हैं, वन्यजीवों के साथ पारस्परिक सह-अस्तित्व सुनिश्चित करते हुए 11,000 से अधिक वन पंचायतों का प्रबंधन करते हैं।
उनके द्वारा कॉन्फ्रेंस में बताया गया कि हाँलांकी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, विशेषकर मानव-वन्यजीव संघर्ष और वनों की आग, परन्तु “तेंदुओं के साथ रहना” जैसे नवोन्मेषी दृष्टिकोण समुदायों को संघर्षों को कम करने में मदद करते हैं, जबकि शीतलाखेत जैसी स्थानीय पहल प्रभावी अग्नि प्रबंधन और वन पुनर्जनन को प्रदर्शित करती हैं। साथ ही प्रदेश में किस प्रकार इकोटूरिज्म को अपनाते हुए, राज्य स्थायी आजीविका और संरक्षण को बढ़ावा देता है, स्थानीय लोगों को प्रकृति मार्गदर्शक और मेजबान के रूप में सशक्त बनाता है। होमस्टे और प्रकृति उत्सवों सहित विकेंद्रीकृत पर्यटन पहल सामुदायिक विकास का समर्थन करते हुए उत्तराखंड के प्राकृतिक वैभव को उजागर करती हैं।
डॉ. समीर सिन्हा प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) एवं मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक, उत्तराखंड ने की समृद्ध वन्य जीव विविधता और संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के बारे में बात की। उन्होंने बाघ, आम तेंदुए जैसे बड़े मांसाहारी, हाथी जैसे शाकाहारी हिम तेंदुए की आबादी के अनुमान पर डेटा साझा किया। उन्होंने मानव मृत्यु और चोट की घटनाओं के साथ-साथ वन्यजीवों की बढ़ती आबादी की चुनौतियों के बारे में भी बात की। उन्होंने बताया कि सर्प जनित मौतें एवं चोटें सबसे अधिक पिथौरागढ़ जिले में हैं। उन्होंने सामुदायिक भागीदारी में वृद्धि, कर्मचारियों द्वारा समय पर प्रतिक्रिया, आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों और प्रौद्योगिकी का उपयोग, हेल्पलाइन फ्री नंबर के विज्ञापन जैसे मानव वन्यजीव संघर्ष परिदृश्यों को कम करने की दिशा में फील्ड कर्मचारियों के प्रयासों का उल्लेख किया। उन्होंने राज्य स्तरीय बंदर नसबंदी कार्यक्रम के बारे में भी बात की, जिससे बंदरों की संख्या में काफी कमी आई है। मानव वन्य जीव संघर्ष न्यूनीकरण के लिए जागरूक होना है, डरना नहीं है।
नरेश कुमार ने उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों जैसे धनोल्टी, देवलसारी, मुनस्यारी आदि में की गई पहल और अनुसंधान विंग द्वारा विकसित अन्य उद्यानों और पार्कों के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने पर्यावरण पर्यटन स्थलों में विभिन्न आवास सुविधाओं और वन्य जीवन के प्रति उत्साही लोगों को शामिल करने के लिए स्थानीय समुदायों, प्रकृति गाइडों, त्योहारों की क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण आवश्यकताओं में सुधार के लिए की गई गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने छोटी हलद्वानी, पवलगढ़ में समुदाय आधारित इको टूरिज्म के बारे में भी बात की। उन्होंने इको टूरिज्म से राजस्व सृजन और इसमें शामिल होने के निर्देश से समुदाय को होने वाले मुनाफे का उल्लेख किया।
डा० कोको रोसे तथा श्री० राजेश भट्ट, पर्यावरणविद् द्वारा मानव वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन पर नवोन्मेषी कार्य और सामुदायिक सहभागिता पर प्रस्तुतिकरण कर टिहरी जनपद में तेंदुए के साथ रहने के कार्यक्रम के मामले के अध्ययन के परिणामों को साझा किया गया।
हातिम यादव तथा श्री० गजेन्द्र पाठक, फार्मासिस्ट अल्मोड़ा द्वारा वनाग्नि प्रबंधन पर नवोन्वेषी कार्य और सामुदायिक सहभागिता पर प्रस्तुतिकरण करते हुए अल्मोड़ा रेंज के शीतलाखेत मॉडल के परिचालन एवं परिणामों का विश्लेषण कर इसकी अन्य जनपदों में क्रियान्वयन किए जाने पर विचार रखे। उन्होंने प्रकाष्ठ की निर्भरता कम करने हेतु बीएल शाही हल वितरण के साथ औण दिवस आयोजित करने की पहल पर जानकारी साझा की।
दिगांथ नायक द्वारा उत्तराखंड में इकोटूरिज्म पर आधारित नवोन्वेषी कार्य के सम्बन्ध में सामुदायिक सहभागिता पर प्रस्तुतिकरण करते हुए छोटी हलद्वानी में समुदाय आधारित इकोटूरिज्म का केस अध्ययन और इसके परिणामों को साझा किया गया।
अन्त में महामहिम राज्यपाल द्वारा मीडिया से वार्तालाप में बताया कि आज की चर्चाएँ गंभीर संरक्षण चुनौतियों से निपटने में समुदायों और वन विभाग के बीच सहयोगात्मक प्रयासों के महत्व को रेखांकित करती हैं। निरंतर साझेदारी और नवाचार के साथ, उत्तराखंड के वनों और वन्यजीवों का भविष्य आशाजनक है। साथ ही महामहिम ने वन विभाग द्वारा कराए जा रहे सार्वजनिक हित के अतुलनीय कार्यों के व्यापक प्रचार-प्रसार किए जाने पर बल दिया।