साहित्य और संस्कृति के संरक्षण को लेकर प्रतिबद्ध है सरकार : मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, साहित्यकारों को ‘साहित्य भूषण’ और ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट’ पुरस्कार के तहत पाँच-पाँच लाख की सम्मान राशि।
उधम सिंह राठौर – प्रधान संपादक
देहरादून, हिमालयन सांस्कृतिक केंद्र, गढ़ी कैंट देहरादून में आयोजित डेरा कवि सम्मेलन में बोलते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राज्य सरकार साहित्य और संस्कृति के संरक्षण एवं प्रोत्साहन के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में उत्कृष्ट साहित्यकारों को सम्मान देने के उद्देश्य से उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान की शुरुआत की गई है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा ‘विभिन्न भाषाओं में ग्रंथ प्रकाशन के लिए वित्तीय सहायता योजना’ चलाई जा रही है, जिसके तहत साहित्यकारों को अनुदान दिया जा रहा है। इसके साथ ही, सरकार प्रदेश के श्रेष्ठ साहित्यकारों को ‘साहित्य भूषण’ और ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट’ पुरस्कार प्रदान कर रही है, जिनमें प्रत्येक को पाँच-पाँच लाख रुपये की सम्मान राशि दी जा रही है।
सीएम धामी ने कहा कि साहित्य को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए राज्य में विभिन्न प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जा रहा है। इससे युवा वर्ग को अपनी सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर से जोड़ने में मदद मिल रही है।
कवि सम्मेलन में प्रसिद्ध कवि डॉ. कुमार विश्वास सहित कई वरिष्ठ कवियों की उपस्थिति रही। मुख्यमंत्री ने सभी कवियों का स्वागत करते हुए कहा कि “कवि केवल शब्दों के निर्माता नहीं, बल्कि समाज के मार्गदर्शक और प्रेरक होते हैं। उनकी कविताएं समाज को दर्पण दिखाने का कार्य करती हैं।”
मुख्यमंत्री ने स्वतंत्रता संग्राम में साहित्यकारों की भूमिका को याद करते हुए कहा कि जब देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, उस समय कवियों की रचनाओं ने जनमानस को प्रेरित किया। उत्तराखंड की साहित्यिक परंपरा को नमन करते हुए उन्होंने सुमित्रानंदन पंत, गिर्दा, नागार्जुन और हरिऔध जैसे महान रचनाकारों को याद किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि “देवभूमि उत्तराखंड की वादियाँ रचनात्मक ऊर्जा की धरोहर रही हैं। हिमालय की चोटियों से विचारों की ऊँचाइयाँ और नदियों की कलकल में कविता की लय समाई हुई है।”
इस अवसर पर डॉ. कुमार विश्वास के साथ भरत कुकरेती, श्री मयंक अग्रवाल, आशुतोष, कुशल कुशलेन्द्र, सुदीप भोला, सुश्री कविता तिवारी, रमेश मुस्कान सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी एवं ‘फनं’ संस्था के प्रतिनिधि मौजूद रहे।

