चुनावी रण में बगावत का असर: क्या बीजेपी बचा पाएगी अपनी साख?

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चुनावी रण में बगावत का असर: क्या बीजेपी बचा पाएगी अपनी साख?

 

उधम सिंह राठौर – प्रधान संपादक

 

रामनगर विधानसभा का चुनाव इस बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। पार्टी से टिकट कटने के बाद नाराज नेता नरेंद्र शर्मा ने बगावत का बिगुल फूंकते हुए निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरकर बीजेपी के समीकरण बिगाड़ दिए हैं। शर्मा के प्रचार अभियान और जनता के बीच बढ़ती पैठ ने बीजेपी प्रत्याशी मदन जोशी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

 

 

नरेंद्र शर्मा का आरोप:
नरेंद्र शर्मा का कहना है कि बीजेपी ने पुराने और मेहनती कार्यकर्ताओं का अपमान किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी ने अयोग्य प्रत्याशी को टिकट देकर जनता के भरोसे के साथ खिलवाड़ किया है। शर्मा ने अपने प्रचार अभियान में जनता के असल मुद्दों जैसे रोजगार, महंगाई और सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। अंकिता हत्याकांड का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने कहा कि बीजेपी आज सत्ता के नशे में चूर होकर जनता के हितों से दूर हो चुकी है।

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प्रचार में महिलाओं की अहम भूमिका:
शर्मा के प्रचार अभियान की खास बात यह है कि इसमें महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। घर-घर जाकर वोट मांगने वाली महिलाएं उनके प्रचार को नई ऊर्जा दे रही हैं। शर्मा का दावा है कि वह जमीनी नेता हैं और जनता के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं।

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बीजेपी का पलटवार:
बीजेपी ने बागी नेता पर तीखा हमला किया है। राज्यसभा सांसद नरेश बंसल ने कहा कि नरेंद्र शर्मा केवल अपनी महत्वाकांक्षाओं के कारण पार्टी में थे। उन्होंने कहा कि जब पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया, तो उन्होंने पार्टी की नीतियों को ठेस पहुंचाने का काम किया। बंसल ने कहा, “पार्टी ऐसे स्वार्थी नेताओं को बर्दाश्त नहीं करेगी, और जनता वोटिंग के दिन बागियों को सही जवाब देगी।”

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क्या बीजेपी संभाल पाएगी समीकरण?
रामनगर का चुनावी रण इस बार बीजेपी के लिए आसान नहीं दिख रहा। बगावतियों के मोर्चे और जनता के असंतोष ने पार्टी की स्थिति को कमजोर किया है। सवाल यह है कि क्या बीजेपी इन परिस्थितियों से उबरकर अपनी स्थिति बचा पाएगी, या रामनगर का यह चुनावी रण उसके लिए एक बड़ी सीख साबित होगा?

 

 

आने वाले दिन तय करेंगे कि रामनगर में ‘कमल’ खिलेगा या ‘टॉर्च’ की रोशनी जनता को नया रास्ता दिखाएगी।