जंगलों की खूबसूरती के साथ खिलवाड़, वन निगम द्वारा तराई पश्चिमी डिवीजन क्षेत्र में भ्रष्टाचार, सरकार के राजस्व में लाखों का नुकसान,  लॉट से लाखों की लकड़ी चोरी का मामला: माल बरामद”। सूत्र ।।

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जंगलों की खूबसूरती के साथ खिलवाड़, वन निगम द्वारा तराई पश्चिमी डिवीजन क्षेत्र में भ्रष्टाचार, सरकार के राजस्व में लाखों का नुकसान,  लॉट से लाखों की लकड़ी चोरी का मामला: माल बरामद”। सूत्र ।।

 

 

उधम सिंह राठौरप्रधान संपादक

 

 

एक कहावत तो आपने जरूर सुनी होगी सियानी बिल्ली खंबा नोचे ऐसा ही कुछ वन निगम करता हुआ दिखाई दे रहा है वन विभाग की कार्यवाही के बाद वन निगम पूरी तरह बौखला उठा और वन विभाग के आरोपो को ना स्वीकारते हुए जांच की बात कर रहा है। ऐसा नही है कि वन निगम में लकड़ी तस्करी का मामला पहली बार उजागर हुआ है इससे पहले भी रामनगर के क्षेत्र ज्वाला वन में करोड़ों की लकड़ी तस्करी हुई और जब मामला मीडिया में उजागर हुआ तो वन विभाग ने आनन फानन में अपने दो अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया था और वन निगम ने एक स्केलर को सस्पेंड कर दिया था। और जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया उसका नतीजा ये हुआ कि वन निगम इस बार ज्वाला वन में कोई लॉट काटने को तैयार नही हुआ। कुछ अधिकारियों की मनमानी के चलते क्या अब आमपोखरा रेंज भी ज्वाला वन बनकर रह गई क्या है पूरा मामला देख एक हमारे खास रिपोर्ट।

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वन निगम द्वारा तराई पश्चिमी डिवीजन क्षेत्र में भ्रष्टाचार का ऐसा गंदा खेल खेला जा रहा है। जो सरकार के राजस्व को तो लाखों का नुकसान पहुंचाने के साथ ही वन निगम के रामनगर में बैठे अधिकारी खुद को सर्वेसर्वा समझ कर वन निगम की नियमावली की धज्जियाँ उड़ा रहे है उनके मन मे उत्तराखंड सरकार या अपने उच्चधिकारियों का कोई भय नही नजर आ रहा है उसका उदाहरण ये हैं की सक्षम अधिकारियों ने अपनी मनमानी करते हुए वन निगम की लॉटो को बिना टेण्डर के ही अपने कुछ चहिते लोगो को दे दिया जबकि वन निगम की बड़ी लॉटो में अखबारों में विज्ञापन निकालकर टेण्डर करवाना अनिवार्य होता हैं लेकिन वन निगम के जिम्मेदार अधिकारियों ने अपने ब्यक्तिगत हिट के चलते अपने चहितो को निजी फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से इस टेण्डर प्रक्रिया का कोई प्रयोग नही किया।

 

 

 

ओर अपने चहितो मिठाई की तरह वन निगम की लॉटे विभागीय रूप में बाट दी गई उसी का ये नतीजा हैं कि वन निगम की लॉटो से लाखों की लकड़ी चोरी हो रही है। साथ ही जंगलों की खूबसूरती के साथ भी खिलवाड़ किया जा रहा था। दरअसल वन विभाग द्वारा वन निगम को यूकेलिप्टस के पेड़ काटने की परमिशन दी गई थी और इसी परमिशन के आड़ में वन विभाग के अधिकारियों ने लकड़ी माफियाओं के साथ मिलकर चोरी छुपे यूके लिप्टिस को बेचने का गंदा धंधा शुरू कर दिया

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लेकिन यह गंदा धंधा ज्यादा दिन नहीं चला डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्य को जैसे ही इस पूरे धंधे की खबर लगी तो प्रकाश चंद्र आर्य ने अपना मुखबिर तंत्र एक्टिव किया जैसे ही लकड़ी माफियाओं द्वारा यूकेलिप्टस को जंगलों से उठाकर अपने अपने गोपनीय अड्डे पर ले जाकर रखा तभी डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्य के निर्देशों पर तैयार हुई टीम ने फिल्मी अंदाज लकड़ी माफियाओं पर कार्यवाही कर दी और कार्रवाई में लाखों की तादाद पर यूके लिप्टस की गड़ियां बरामद की गई डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्य द्वारा अग्रिम कार्रवाई की जा रही है। वन निगम के खिलाफ भी अब कार्रवाई करने की तैयारी डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्य द्वारा कर ली गई है।

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वही अपने फर्ज से गद्दारी कर पैसों के लालच में सरकार को राजस्व का नुकसान पहुंचाने वाले और वन विभाग की आंखों में मिर्ची झोंकने का प्रयास करने की नाकाम कोशिश करने वाले अब डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्य की कार्रवाई से बुरी तरह बौखला गए है अब मीडिया के आगे अपनी सफाई पेश करते हुए नजर आ रहे हैं । क्या कुछ कहा अपनी सफाई में वन निगम के क्षेत्रीय प्रबंधक हरीश पाल ने आप भी सुनिए।

 

 

 

बरहाल माफियाओं के साठगांठ से सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचाने वाले वन निगम के अधिकारियों का खेल डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्य ने फेल कर दिया है और वन विभाग के डीएफओ प्रकाश चंद्र आर्य की कार्रवाई से वन निगम पूरी तरह बौखला चुका है और अब जांच की मांग कर रहा है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि वन विभाग द्वारा और कितने भ्रष्टाचार के खेलों से पर्दा फास्ट होता है। जो पहन के पीछे रहकर वन निगम द्वारा खेले जा रहे हैं।